Wednesday, October 11, 2017

Tuesday, September 19, 2017

Saturday, July 22, 2017

Saturday, July 15, 2017

hindi shayari by kumar wishwas


Panha me jo Aya ho uspe war kya karna
Jo Dil hara hua ho us par Adhikar kya Karna!
Muhobbat ka maza to Dubne ki kasmakash me hai
Ho gar malum gehrai to dariya par kya karna!

Friday, May 19, 2017

Mile Uruj to Magrur mat Hona




Mohabbat rang de jati hai

Mohabbat rang de jati hai
jab dil dil se milta hai
magar muskhil to ye hai
dil badi mushkil se milata hai



Friday, May 12, 2017

न जाने कितनी अनकही बातें

न जाने कितनी अनकही बातें, कितनी हसरतें साथ ले जाएंगे,
लोग झूठ कहते हैं कि खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाएंगे.
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पेट की आग को स्वाभिमान से बुझाई है! 
फिरभी हर वक्त जिल्लत झिड़की पाई है!
हाँ मैं मजदूर हूँ मेहनत से नहीं घबराता!
खून सा पसीना बहाया तब रोटी खाई है!
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हम रूठे दिलों को मनाने में रह गए; 
गैरों को अपना दर्द सुनाने में रह गए; 
मंज़िल हमारी, हमारे करीब से गुज़र गयी; 
हम दूसरों को रास्ता दिखाने में रह गए।.
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मुफ्त मे नही मांगी थी दिल मे जगह तेरे,
किराया आज तक चुका रहा हूँ आँसुओं से मेरे
दिल है ...ज़िन्दगी है...जान भी बाकी है.....
जाने क्यों फिर भी हर खुशी आधी है...!!!
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जरूरी नही है की हर किसी को मौत ही छूकर निकले..
किसी किसी को छूकर जिंदगी भी निकल जाती है.... #
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तुझे पाने की उमीद नहीं फिर भी इंतजार है
चाहत अधुरी ही सही 
पर तेरे लिए बेशुमार है....

Thursday, April 13, 2017

तारीफ़' करती है जिस दिन ये दुनिया

*"'तारीफ़' करती है जिस दिन ये दुनिया 'बहुत' मेरी,*
*मैं घर जाकर 'आईने' में 'असलियत' देख लेता हूँ।*

*मेरी 'आवाज़' कभी उनकी आवाज़ से 'ऊँची' नहीं होती,*
*मैं अपने 'वालिद' की आँखों में अपना 'बचपन' देख लेता हूँ।*

*अपनी 'तन्हाई' पर जब 'तरस' आने लगता है मुझको,*
*मैं 'खिड़की' खोलकर उस 'चाँद' को देख लेता हूँ।*

*बहुत 'बेचैन' हो जाता है जब 'कभी' भी दिल मेरा,*
*मैं 'घर' जाकर अपनी 'माँ' का 'चेहरा' देख लेता हूँ।*

*खुदा से 'शिकायत' नहीं कर पाता मैं किसी 'बात' की,*
*मस्जिद' के रास्ते में रोज़ एक 'ग़रीब' को देख लेता हूँ।*

*इस 'जहाँ' की 'मोहब्बत' जब बहुत 'ज़्यादा' होने लगती है,*
*सड़क' पर पड़े किसी परिंदे का 'घोंसला' देख लेता हूँ।*

*नहीं 'चढ़ता' है मुझ पर कभी दौलत का 'ख़ुमार',*
*अक्सर' किसी 'जनाज़े' को गुज़रते देख लेता हूँ।*